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Saturday, 28 November 2020

कढ़ी-कॉर्नफ्लैक्स

 कढ़ी न पूछो कैसे बनाई.


समझो बनी-बनाई आयी.

दूसरी बार ऐसा हुआ कढ़ी-चावल का ऑर्डर दिया था, बंदा ले आया सिर्फ़ कढ़ी ! पहली बार तो खाली कढ़ी ही खाली-अगला बनाता अच्छी है-घर और माताजी याद आ जातीं हैं.

मगर आज दोबारा यही हुआ. प्लास्टिक का कंटेनर खोलकर खाना शुरु किया. गर्मागर्म स्वादिष्ट कढ़ी. गुरु दिन में एक बार तो खाते हो ! खाली कढ़ी ! कब तक !

ब्रैड-बन वगैरह याद आए. इस समय कुछ भी तो पडा नहीं है घर में ! अरे हां, रस्क तो पड़ी हैं न. ट्राई करते हैं.

अलमारी खोली कि कॉर्न फ्लैक्स का बड़ा पैकेट दिखाई दिया.

लॉक-डाउन की मेहरबानी से.

अब तो समस्या हल.

चावल की जगह कॉर्न फ्लैक्स्.

कसम से मज़ा आया.

कॉर्न फ्लैक्स् जब कुरमुरे थे तब पहला मज़ा और जब भीग गए तो दूसरा मज़ा.

निराशा में आशा.


अगर पहले न खाएं हों तो अब खा सकते हैं.

नहीं भी पसंद आया तो मेरा क्या जाएगा ?

-संजय ग्रोवर