भूख नये की........नये विचार की, नये आचार की......नये स्वाद की, नयी याद की.....नयी आकृति की, नयी संस्कृति की.......नये साज़ की, नये अंदाज़ की......बस कुछ नया करना है, करना है, करना है.....अभी, बिलकुल अभी जो किया था, पुराना हो गया......फिर कुछ नया करना है.......
3-4 साल पहले गर्मियों के लिए कोई अच्छा शर्बत लेने गया था, दुकानदार ने हितकारी के स्वदेशी के कई फ़्लैवर सामने रख दिए। मैंने उसमें से एक जीरा-ट्रीट ले लिया। काफ़ी पसंद आया। उसे मैंने शर्बत की तरह तो पिया ही, पकौड़ों के साथ सॉस की तरह खाया, चटनी की तरह इस्तेमाल किया, कई बार बिना किसी चीज़ के साथ और बिना वजह भी खाया।
आज एक और काम किया। ब्राउन ब्रैड के एक स्लाइस पर हल्का-हल्का जीरा-ट्रीट लगा दिया। दूसरे स्लाइस पर हल्का फ़ैटलैस बटर लगा दिया। दोनों स्लाइस के जीरा-ट्रीट और बटर वाले हिस्से आपस में मिलाकर हल्का-हल्का घी लगाकर तवे पर सेंक लिया। चाय के साथ अच्छा-ख़ासा नाश्ता तैयार हो गया। इसके साथ चाहें तो, यह गाना भी सुन सकते हैं-
फिर तीन अंडे। इस बार चाट मसाला खो गया है। नमक से काम चलाएंगे। अगर थोड़ी-सी बारीक़ वाली हींग-गोलियां भी हो तो मज़े की ज़्यादा संभावना है।
मेरे पास बराबर वाले ढाबे की रात की बची चटनी भी है और हाफ़ पीली दाल भी है। अंडे फेंट के आधा पाउच चटनी और स्वादानुसार नमक डाल लें। मैंने इसमें बारीक़ हिंगोलियां भी डाल लीं हैं।
दाल हाफ़ की भी हाफ़ करके साथ में फ़ेंट ली है। अब ब्रेड इसीमें लपेट-लपेटकर तवे पर घी लगाकर सेंकें। तेल लगाना हो तो तेल लगाएं, रिफ़ाइंड भी चलेगा। जैसा आपका बजट हो, इसमें अपना क्या जाता है !
कसम से मज़ा आ गया। चाहें तो ऊंगलियां-वूंगलियां भी चाट सकते हैं, पर कई बार इन्फ़ेक्शन भी हो जाता है। अपना तर्जुबा तो यही है।
चाटना संस्कृति है तो होगी पर इतनी अच्छी भी नहीं है....
अगर मिर्च-मसाला कम रह गया हो तो बची हुई चटनी ऊपर से छिड़क लें। आपको तो मालूम ही होगा कि यहां टेबल के ऊपर-नीचे से भी बाद में एडजस्टमेंट हो जाता है, लिफ़ाफ़ेबाज़ी ख़ूब चलती है...
अंडे में थोड़ा मक्खन/मलाई मिलाकर ब्रैड पर लपेटें तो उसे फ्रेंच-टोस्ट कहते हैं, किसीने बताया। इसे मैं बेंच-टोस्ट कहूंगा। कैलोरीज़ वगैरह ख़ुद पता लगाएं। मैं तो कई बार स्वाद के लिए खाता हूं।
मक्के की रोटी 3-4 साल पहले बनानी शुरु की थी। लगभग दो साल सर्दियों में यही नाश्ता किया। लंच की ज़रुरत ही नहीं पड़ती थी। एक वक़्त का खाना यानि पैसे भी बचते थे। बचपन से ही हमें, सरसों के साग के साथ खाने के बजाय सुबह के नाश्ते में मलाई या मक्खन के साथ मक्के की रोटी ज़्यादा भाती थी।
इस बार फिर बनाना शुरु किया तो हर बार तवे से चिपक गई, जल गई। मज़ा नहीं आ रहा था। कल रात एक तरीक़ा सूझा, बस माहौल बन गया। आईए, पकाते हैं। आपको नहीं, आपको तो कोई भी पका लेगा। अगर आपको दो ऐवरेज साइज़ रोटी बनानी हैं तो कटोरी में तीन अंडे फोड़ लें। स्वादानुसार नमक डाल लें। चाहें तो छोटे-छोटे पीस करके धनिया-प्याज़-टमाटर आदि भी इच्छानुसार डाल सकते हैं। मेरे पास थे ही नहीं तो डालता भी कैसे ? चाट मसाला भी डाल सकते हैं। परंपरा तोड़े बिना न तो दुनिया बेहतर होती है न स्वाद।
अंडे-धनिया-प्याज़-टमाटर आदि अच्छी तरह फेंट लें। फिर इसीसे आटा मल लें। ज़रुरी नहीं है कि हाथ से ही मलें। मेरा काम तो चम्मच से ही हो गया था। तवे पर इतना घी डालें कि अंडा जल्दी न जल जाए, मक्की अपेक्षाकृत पकने में थोड़ा ज़्यादा वक़्त लेती है। अंडा मिक्स है इसलिए बहुत ज़्यादा वक़्त भी नहीं लेगी। आम-तौर पर मक्का पकने में काफ़ी वक्त लगता है। पर यह इतनी जल्दी, स्वादिष्ट और कुरमुरी बन गई कि मैंने इसे ‘बैचलर्स मकरैंडू’ नाम दे दिया। बैचलर या अकेले लड़के-लडकियां इसे आराम से बना सकते हैं और मज़े से खा सकते हैं। चाय के साथ, अचार के साथ, चटनी के साथ, सॉस के साथ, जैसे मर्ज़ी हो वैसे खाएं।